3263903408976ef62a7624cee5a318101718972116550702 original

बिहार में आरक्षण के मसले पर गंभीर हैं नीतीश तो संविधान की अनुसूची 9 में करें शामिल, न छिपें कोर्ट के पीछे

<p style="text-align: justify;">गुरुवार 20 जून को पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार का वह फैसला रद्द कर दिया जिसके तहत आरक्षण की सीमा बढ़कर 65 फीसदी तक हो गई थी. बिहार में जब तेजस्वी और नीतीश ने गठबंधन की सरकार बनाई थी, उस वक्त जातिगत सर्वे हुआ था और सर्वे के बाद आरक्षण की सीमा भी बढ़ाई गई थी,जो बढ़कर कुल 65 फीसदी हो गई थी. उसमें अगर सवर्ण आरक्षण मिला दें तो कोटा बढ़कर 75 फीसदी पर पहुंच गया था. कई संगठनों ने इस आरक्षण के कानून को चुनौती दी थी और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली दो जजों की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 14 ,15 और 16 के खिलाफ़ बताते हुए इसे रद्द कर दिया है. इसके खिलाफ अब सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी, ऐसा उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सम्राट चौधरी ने कहा है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आरक्षण की सीलिंग</strong>&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले आरक्षण की &nbsp;सीलिंग 50 फीसदी तय की थी. उसके खिलाफ़ जाकर जब भी जहां ऐसा कुछ काम हुआ है,अदालत में अमूमन उसको कैंसल ही किया गया है. हालांकि, कई राज्यों में 50 फीसदी की सीमा 60, 70, 75 कुछ जगह 80 फीसदी तक लाने की कोशिश की गई है, लेकिन जिन भी जगहों पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण हुआ है जहाँ पर उसको संविधान की अनुसूची 9 में डाला गया है. जो शेड्यूल नाइन में नहीं डाला गया उसको कोर्ट ने इसी तरह से हवाला देते हुए कॉन्स्टिट्यूशन में आर्टिकल 14,15 और 16 के् तहत कैंसिल किया है. इसके साथ भी वही होना था और वही हुआ है . इसलिए इस फैसले से बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं है. आरक्षण शुरू से ही एक &nbsp;विशुद्ध राजनीतिक मुद्दा है. जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई थी और वी पी सिंह की सरकार ने इसको लागू किया था तो उसके पीछे एक धारणा थी.&nbsp; उस धारणा को भी लगभग 25-30 साल हो गए. धारणा यह थी कि जो वंचित समुदाय है उसका विकास होगा. &nbsp;आरक्षण के पीछे की &nbsp;जो मंशा है वो यह है कि जो सामाजिक, सांस्कृतिक, पारंपरिक रूप से पिछड़े हैं,उनका विकास हो.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>संविधान और आरक्षण</strong></p>
<p style="text-align: justify;">इसमें संविधान में जो शुरुआती आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया गया था, उसके पीछे भी यही मंशा थी. उन मंशाओं पर सवाल हम लोग नहीं उठा सकते, उठाना भी नहीं चाहिए क्योंकि वो वाकई जरूरी था. हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह आरक्षण कब तक और कितना? जब मोहन भागवत जी ने यह बात कही तो लोगों को अच्छा नहीं लगा. भाजपा को इसका पोलिटिकल नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन हर चीज़ की &nbsp;समीक्षा होती है. जब आज 30 से 35 साल बाद उदारवाद और नवदारवाद की समीक्षा करते हैं और पाते हैं कि इसके क्या हासिल रहे और क्या नुकसान रहे तब पता लगता है कि &nbsp;जो चीज़ 50 – 60 सालों से चली आ रही है, उसकी समीक्षा के लिए भी आवश्यकता है. नीतीश कुमार भी उसी मंडलवादी आंदोलन से निकले हुए नेता है. उसी धारा के नेता हैं. तेजस्वी यादव और लालू यादव भी उसी धारा के नेता हैं. तात्कालिक राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इन्होंने 75% तक की सीमा को बिहार में बढ़ाया और जातिगत सर्वे कराया. उनका एजेंडा है. उन्होनें अपने वोटर्स को&nbsp; लुभाने के लिए ये काम किया, लेकिन &nbsp;सवाल यह है कि &nbsp;क्या उन्होने यह काम मूर्ख बनाने के लिए किया? जब उनको यह पता था कि पटना हाई कोर्ट से या सुप्रीम कोर्ट से ये खारिज होने वाला है. पटना हाई कोर्ट से जब खारिज हो गया तो ऐसे में यह कहना कि हम सुप्रीम कोर्ट &nbsp;जाएंगे. यह तो सीधे सीधे उन तमाम जनता मतदाताओं को मूर्ख बनाने का काम है जिन्होंने उनको भारी बहुमत दिया.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कोर्ट-कोर्ट खेलना बेकार</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जनता ने लोकसभा की 16 सीटों में 12 सीटें नीतीश कुमार को दीं. अब इस वक्त वे कह रहे हैं कि अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे, सुप्रीम कोर्ट जाकर क्या कर लेंगे जबकि उसका एकमात्र उपचार यही है कि &nbsp;उसको संविधान के शेड्यूल 9 में डलवाया जाए ताकि उसको किसी कोर्ट में चैलेंज ना किया जा सके, जैसा कि तमिलनाडु में जयललिता सरकार ने कराया. आज इस वक्त नीतीश कुमार बी जे पी के सहयोगी हैं, बिना शर्त समर्थन दिए हुए हैं. बीजेपी से सीधे-सीधे बात करके इस मसले को शेड्यूल 9 में &nbsp;नहीं डलवाया जा सकता क्या? सुप्रीम कोर्ट जाने से &nbsp;सीधा अर्थ है कि &nbsp;जनता को और मतदाताओं को मूर्ख बना रहे हैं.लालू यादव ने एक दूसरा बखेड़ा जरूर शुरू कर दिया है, उन्होंने एसेट-डिस्ट्रिब्यूशन को लेकर कुछ बातें कही हैं और उससे एक नया विवाद शुरू हो गया है. असल में लालू यादव इस चुनाव में लोकसभा चुनाव में बुरी तरह परास्त हुए हैं. चार सीटों पर उन्हें संतोष करना पड़ा है, जबकि इस बार उनके लिए माहौल बहुत अच्छा था. अब लालू यादव अपना अंतिम ब्रह्मास्त्र चलाना चाहते है. 1989 में &nbsp;वी पी सिंह &nbsp;ने जब मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया था, उस समय &nbsp;इस देश में, खासकर उत्तर भारत में हिंसा की जो आग भड़की थी वो बहुत खतरनाक थी. लालू यादव जो बयान दे रहे हैं ,उनको भली भांति अंदाजा है कि वो क्या बयान दे रहे हैं और इसके परिणाम क्या हो सकते हैं? इसका परिणाम तो बिहार में गृह युद्ध के तौर पर होगा. लालू क्या यही करवाना चाहते हैं, हिंसा भड़काना चाहते हैं. एसेट डिक्लेरेशन की अगर बात है तो जो मूल एसेट लैंड होता है. लैंड है, गाड़ी &nbsp;है &nbsp;घर है, जो इस वक्त है. बैंक बैलेंस तो किसी ने बताया नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>लालू का बयान बेहद खतरनाक</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सवाल है कि नीतीश कुमार के साथ लालू दो-दो बार, तीन- तीन बार सरकार बना चुके हैं और नीतीश कुमार ने &nbsp;बहुत शुरू में बंदोपाध्याय कमिटी बनाई थी. उस बंदोपाध्याय कमिटी की सिफारिशों का क्या हुआ. वो कहां है, उसकी रिपोर्ट कहां है, उसको लागू क्यों नहीं किया गया? बंदोपाध्याय कमेटी &nbsp;इस बात की जांच के लिए &nbsp;बनायी गई थी कि किसके पास कितनी जमीन है ताकि नीतीश कुमार उस आधार पर लैंड रिफॉर्म का काम कर सकें. जब रिपोर्ट आई तो नीतीश कुमार यह कदन नहीं उठा पाए. उस रिपोर्ट को लागू नहीं कर सके और उसको ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. आज की तारीख में जब लालू यादव एसेट डिस्ट्रीब्यूशन की बात करते हैं तो &nbsp;सिर्फ दो कम्युनिटी का नाम सामने आता है जिसमें एक के&nbsp; लीडर लालू यादव हैं और एक नीतीश कुमार हैं, जिसको तकरीबन एक कमिटी ने पोलिटिकली बैकवर्ड मानने से इंकार कर दिया है. नगर निकाय के चुनावों में जो आरक्षण मिलता है, उस पर एक नई बहस चल रही थी. मामला सुप्रीम कोर्ट में है कि क्या बिहार में कुर्मी या यादवों को पोलिटिकली बैकवर्ड माना जाए? पिछले 30 सालों के लालू और नीतीश के शासन में &nbsp;देखा गया है कि इन दो जातियों का विकास राजनैतिक तौर पर, सामाजिक तौर पर, शैक्षणिक तौर पर और आर्थिक तौर पर भी बेहतर हुआ है. उनके पास &nbsp;लैंड का ओनरशिप बढ़ा है. थोड़ा ही सही लेकिन बढ़ा है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अन्य पिछड़ा वर्ग और आरक्षण</strong></p>
<p style="text-align: justify;">यादव और कुर्मी के मुकाबले अन्य जो ओबीसी, इबीसी, एमबीसी, एससी जातियां हैं, उनके पास ना के बराबर जमीन है. जब बंटवारे की बात आएगी तो क्या होगा? ये पिछड़ों के बीच लड़ाई करवाएंगे, पिछड़ों-दलितों के बीच लड़ाई करवाएंगे, पिछड़े, दलितों और सवर्णों के बीच लड़ाई करवाएंगे. क्या वही दौर फिर से आएगा जो जहानाबाद और गया में था. ये बड़ा खतरनाक बयान है और इस पर राजनीतिक तौर पर भी और कानूनी तौर पर भी, इसको देखा जाना चाहिए, क्योंकि इस वक्त वो भले बयान देकर पीछे हट जा रहे हैं लेकिन .यह स्पष्ट &nbsp;है कि अगला जो विधानसभा चुनाव होगा उसमें लालू यादव के लिए यही अंतिम हथियार होगा और इसी के सहारे वो चुनाव लड़ना चाहेंगे. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">यह बिल्कुल बांटने वाली नीति होगी. वो बिलकुल इस समाज को इतनी बुरी तरीके से बाटेगा जो आगे चलकर हिंसा और नफरत में बदलेगा तो ये एक बड़ा खतरा है. इस वक्त इसको समझने की जरूरत है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]</strong></p>

Source link: ABP News

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top