बिहार के किसानों के लिए केले की खेती एक महत्वपूर्ण और लाभकारी विकल्प बनती जा रही है. राज्य की जलवायु और उपजाऊ मिट्टी केले की खेती के लिए अत्यधिक अनुकूल मानी जाती है. खासतौर पर बिहार के हाजीपुर क्षेत्र का केला अपनी गुणवत्ता और मिठास के लिए देशभर में प्रसिद्ध है.
भारत में केले की खेती का परिदृश्य
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 998.55 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में केले की खेती होती है. इससे 36,666.87 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है, और राष्ट्रीय उत्पादकता 36.72 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है. वहीं, बिहार में 44.08 हजार हेक्टेयर में केले की खेती हुई, जिससे 2004.27 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ. राज्य की उत्पादकता 45.46 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर रही, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है.
राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान
केले की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह न केवल किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि राज्य के कृषि उत्पादन में भी वृद्धि करता है. वैशाली और कोसी क्षेत्र जैसे इलाकों में केले की खेती व्यापक स्तर पर की जाती है.
लाल केला: एक नई संभावना
डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में लाल और पीले केला की दो मुख्य प्रजातियां उगाई जाती हैं. लाल केला दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है, जहां यह 100-150 रुपये प्रति दर्जन बिकता है. इसके औषधीय और पोषक गुणों को ध्यान में रखते हुए, बिहार में लाल केला की खेती पर शोध प्रारंभ किया गया है.
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और संभावनाएं
वैज्ञानिकों का मानना है कि केला एक उष्णकटिबंधीय फल है, जो गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतरीन उपज देता है. बिहार के किसान पारंपरिक और वैज्ञानिक दोनों तरीकों से खेती करते हैं. वैशाली क्षेत्र में लंबी प्रजातियों के केलों की खेती परंपरागत रूप से होती है, जबकि कोसी क्षेत्र में बौनी प्रजातियों की खेती वैज्ञानिक विधियों से की जाती है.
टिश्यू कल्चर से बढ़ेगी उपज
वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि लंबी प्रजातियों के केलों जैसे मालभोग, अलपान और दूध सागर की टिश्यू कल्चर तकनीक से पौधे तैयार किए जाएं. इससे उपज में सुधार होगा और किसानों को अधिक लाभ मिलेगा.
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