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Bahraich Communal violence during idor immersion raised many questions ABPP | Opinion: बहराइच की घटना पर याद आती है ये लाइन

बहराइच की घटना पर एक पुरानी कहावत याद आती है- बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होय. ठीक यही बात मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की जो केन्द्र और राज्य में सरकार है, इनकी बुनियाद ही आंतरिक द्वेष, अंतर्कलह और अंतर्द्वंद पर टिकी हुई है. इनका आधार ही यही है कि परस्पर आपस में बंटवारा हो,  विभेद हो और एक दूसरे के प्रति द्वेष का भाव बना रहे.

ऐसा नहीं है कि ये काम सरकार में आने के बाद कर रहे हैं, बल्कि ये शुरू से ऐसा करते आ रहे हैं. कई बार इनके ऊपर एफआईआर हुई है, कानून का एक्शन हुआ है. अयोध्या कांड को लेकर इनके बड़े-बड़े नेताओं पर मुकदमे हुए. लेकिन, जब ये खुद सत्ता में आए और वो भी पूर्ण सत्ता में आ गए, उसके बाद निश्चित रुप से स्थितियां बदतर और विकराल हो गई हैं. जैसा अब दिख रहा है कि चूंकि इन्हीं का राज्य और साम्राज्य है, इन्हीं की तूती है, इन्हीं की बोली है और इन्हीं के लोग हैं. यानी पूरा इकोसिस्टम अब इन्हीं के हाथों में है.

नफरत से नहीं होगा भला

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के लिए मांग हमने की थी कि इनका नाम भारतीय जनता दल होना चाहिए, क्योंकि पार्टी अंग्रेजी शब्द है. जहां तक बहराइच की घटना की बात है तो इसे भारतीय जनता दल की ही इन तमाम कार्यों और रीतियों का एक परिणाम मानते हैं. एक अत्यंत दुखद परिणाम मानते हैं. और जिस युवक की इस घटना में मौत हुई है, उसे इस पूरे प्रकरण का प्राकृतिक आपदा के तौर पर देखते हैं.

क्योंकि, जो स्थितियां बनाई जा रही हैं, उनमें निश्चित रुप से पक्ष और विपक्ष से इस प्रकार के लोगों की आहूतियां निश्चित रुप से होंगी. आप भले ही दुश्मन किसी को बनाइये, लेकिन ये राजनीति है. राजनीति में मनभेद को ही वोट मांगने का एकमात्र पैमाना और तरीका बना दिया गया है.

सबसे कष्टकर बात ये है कि सोशल मीडिया एक प्रमुख यंत्र है, इनके पोस्ट और शब्द, इनके वाक्य पर गौर करिए. वो पार्टी जो लॉरेंस बिश्नोई को महिमा मंडित करने में लगी हुई है, कि उसने कथित तौर पर मुस्लिम एक्टर को धमकी दी या फिर हाल में एक एनसीपी नेता को मारा.

लॉरेंस बिश्नोई का कर रहे महिमा मंडन

यानी वे हिन्दू-मुस्लिम कर के स्थितियों को काफी विषाक्त बना रहे हैं. इसके मूल में नहीं जा रहे हैं, लेकिन अगर नफरत के बीच बोए जाएंगे तो इसके परिणाम भयावह ही होंगे. चूंकि, इस तरह की स्थितियां बनती गईं या फिर बनाई गई तो फिर इसका परिणाम गंभीर या दुखद तो होना ही है. दूसरी बात ये आती है कि जब घटना घट गई तो उसके बाद क्या कुछ कार्रवाई हो. 

ताकि, कम से कम उसके बाद निष्पक्षता हो. पक्षपात का आरोप न लगे. यहां पर जो भी शासन-प्रशासन है, वो सत्ता के दबाव में आकर पूरी तरह से अनुचित कार्य और व्यवहार कर रही है. 

पूरे मामले को सही ढंग से निराकरण करने की जगह, इस प्रयास में लगे हुए हैं कि कैके इसको वर्ग विभाजन के रुप में दिखाया जाए. कैसे आपसी द्वंद्व को विकराल दिखाते हुए इसे बड़ा किया जाए.

निपक्षता का अपेक्षा

 दरअसल, जब इस प्रकार के तनाव को जब दूर करना रहता है तो प्रशासन से पहली अपेक्षा ये रहती है कि वह निष्पक्ष रहे. दूसरी अपेक्षा ये होती है कि कड़ाई से पेश आए. यानी, अगर निष्पक्षता के साथ कड़ाई से पेश आए तो उसे कोई बुरा नहीं मानेगा. इंसान का फितरत रहती है कि अगर मुझे प्रशासन ने एक लाठी मारा और दूसरी लाठी साथ को मारा तो इसमें अगर ईमानदारी हो तो लोग प्रशासन से कभी नाराज नहीं होते हैं.

लोग ये मान लेते है कि लगती दोनों तरफ की थी. यदि अगर ऐसा हुआ कि उसे मारा और मुझे नहीं मारा या फिर मुझे मारा और उसको नहीं मारा तो फिर इस हालत में स्थितियां बिगड़ती हैं. इस हमले में भी स्पष्ट रुप से निष्पक्ष कार्रवाई होते हुए नहीं दिख रहा है. जो हालात को और अधिक बिगाड़ता है, वो दिख रहा है. सिर्फ घटना घटी ये तो अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण था ही, अब इसमें आगे क्या कुछ होगा इस पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो रहा है.

अतीत में कुछ ऐसी भी सरकारें रही जब धर्म या फिर जाति के आधार पर विद्वेष पैदा करने को कोशिश नहीं की गई थी. इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखा था. वास्तव में अगर कानून-व्यवस्था का कड़ाई के साथ पालन ये उस वक्त हुआ था, ईमानदारी के साथ कभी भी इसका पालन कराया जा सकता है.

ये सत्तापक्ष के ऊपर है कि वे इस मामले में ईमानदारीपूर्वक काम करेंगे. क्योंकि जब सरकार ही इसे नहीं दिखा रही है तो फिर सरकार के लोग भी नहीं दिखा रहा है. ऐसे में वे आगे चलकर इसे और भी खतरनाक बनाएंगे. क्योंकि जब तक दिमाग में ईमानदारी नहीं होगी तो परिणाम भी अच्छे नहीं होंगे.

इस पूरे प्रकरण में मुख्य मुद्दा ये है कि पहले जो लड़ाईयां लड़वाई गई वो अपनी जगह है, लेकिन अब कम से कम इसे समाप्त किया जाना चाहिए. निष्पक्ष कार्य कर स्थितियों को ठीक करने का प्रयास किया जाना चाहिए, अन्यथा दोनों तरफ से आहूतियां होंगी.  इस देश में अगर कुछ भी गलत होगा तो हम और आप जैसे व्यक्ति जो सिर्फ और सिर्फ देश के लिए सोचते हैं, वे अंत में ठगे हुए और नुकसान में पाएंगे.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Source link: ABP News

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