जापान पर हुए परमाणु हमले के निशान अभी भी दुनिया के सीने पर हैं. उस दृश्य को भूल पाना मानव सभ्यता के लिए आसान नहीं है. सिर्फ एक क्षण में हजारों लाखों जिंदगियां इस परमाणु हमले की वजह से खत्म हो गईं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिरोशिमा पर गिराया जाने वाला परमाणु बम असल में जापान के क्योटो पर गिरने वाला था. चलिए आपको बताते हैं कि अंतिम समय में ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका ने अपना फैसला बदल दिया और परमाणु हमले के लिए क्योटो की जगह हिरोशिमा को चुन लिया.
एक हनीमून की है कहानी
ये साल था 1920 का. अमेरिका के तत्कालीन युद्ध मंत्री हेनरी एल. स्टिमसन अपनी पत्नी के साथ हनीमून मनाने जापान के शहर क्योटो गए थे. जब वह क्योटो पहुंचे तो उस शहर की खूबसूरती और शांत माहौल वे उनका दिल जीत लिया. उनकी पत्नी को भी ये शहर दुनिया के बाकी शहरों से कहीं ज्यादा खूबसूरत लगा.
अब बात द्वितीय विश्य युद्ध की. हेनरी एल. स्टिमसन के क्योटो में हनीमून मानने के लगभग 25 साल बाद दुनिया द्वितीय विश्य युद्ध की आग में जल रही थी. अमेरिका अपने दुश्मन जापान को सबक सिखाना चाह रहा था. उसने फैसला किया कि वह जापान को घुटनों पर लाने के लिए परमाणु बम का इस्तेमाल करेगा. इस हमले के लिए जापान के तीन शहर चुने गए. इन तीन शहरों में क्योटो का भी नाम था.
जब स्टिमसन को ये बात पता चली तो वो भड़क गए. उन्होंने लिस्ट से क्योटो का नाम हटाने के लिए अपनी एड़ी चोटी का बल लगा दिया. उनका मानना था कि उस शहर से उनके जीवन की सबसे प्यारी यादें जुड़ी हैं और ये शहर बेहद प्यारा है तो इसको तबाह नहीं होने दे सकते. अंत में स्टिमसन अपने प्रयास में सफल हुए और अमेरिकी सरकार ने परमाणु बम हमले के लिए हिरोशिमा और नागासाकी को चुना.
हमले के बाद कितना तबाह हुआ हिरोशिमा
6 अगस्त, 1945 को सुबह 8 बज कर 15 मिनट पर जब परमाणु बम लिटिल बॉय को हिरोशिमा पर गिराया गया तो तबाही के अलावा उस शहर में कुछ नहीं बचा. बम के जमीन से टकराते ही वहां का तापमान 10 लाख सेंडीग्रेट तक पहुंच गया. सब कुछ खाक हो गया. लगभग 80 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी. जो लोग बचे वो जिंदा लाश बन चुके थे. हर तरफ सिर्फ घायल लोग और गिरी हुई इमारतें नजर आ रही थीं. हिरोशिमा को इस घाव से उबरने में दशकों लग गए. भले ही आज हिरोशिमा एक शानदार शहर है, लेकिन उसके दिल में लिटिल बॉय के दिए ज़ख्म अभी भी ताज़ा बने हुए हैं.
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